अगर आप भी खेलते हैं यह गेम तो पहले इस खबर को जरूर पढ़ें

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Thursday, August 18, 2016-4:23 PM

पोकेमोन गो भी ‘टेक्सटिंग’ जितना ही खतरनाक है: शोध 

ह्यूस्टन : एक नए शोध में पता चला है कि स्थल आधारित रियलिटी गेम ‘पोकेमोन गो’ खेलने से लोगों को उसी तरह के खतरे हो सकते हैं जिस तरह के ‘टैक्सटिंग’ के दौरान पेश आते हैं। ‘पोकेमोन गो’ इसी साल जुलाई में लांच हुई है। इसमें ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जी.पी.एस.) की मदद से खिलाड़ी पोकेमोन को खोजते हैं, उन्हें पकड़ते हैं, उनसे लड़ते हैं और उन्हें प्रशिक्षण देते हैं। ये पोकेमोन स्क्रीन पर इस तरह नजर आते हैं जैसे वे उसी असल दुनिया में हों जिसमें खिलाड़ी है।

यह गेम दुनियाभर में काफी लोकप्रिय हुआ है और इसे 10 करोड़ से ज्यादा बार डाऊनलोड किया जा चुका है। गेम के लांच होने के बाद से एेसी खबरें आने लगीं थी कि इसके खिलाड़ी गिर रहे हैं, चीजों से टकरा रहे हैं और यहां तक कि गेम खेलते हुए व्यस्त सड़कों पर पहुंच रहे हैं। 

अमरीका की टेक्सास ए एेंड एम यूनिवर्सिटी में शोध विज्ञानी कोनराड अर्नेस्ट ने कहा, ‘‘मेरे ख्याल से पोकेमोन गो से परेशानी यह है कि यह बिलकुल एेसी दुनिया में ले जाती है जहां व्यक्ति की गति एकदम धीमी हो जाती है और लोग अपने पोकेमोन को पकडऩे के लिए विशेष दिशा में चलने लगते हैं।’’ 

बीते साल अर्नेस्ट ने चलते हुए ‘टैक्सटिंग’ पर शोध किया था। इसमें पाया था कि बिना ध्यान भटकाए राहगीरों के मुकाबले ‘टैक्सटिंग’ कर रहे और संज्ञानात्मक रूप भटके राहगीरों की चलने की गति धीमी हो जाती है, वे अड़चनों से पार पाने के लिए ज्यादा और उंचे डग भरते हैं। अर्नेस्ट ने कहा, ‘‘इसकी संभावना ज्यादा होती है कि जब ‘क्रासवाक’ का संकेत साफ तौर पर जाने का नहीं होता है तो खिलाड़ी सड़क पार करें। इसकी ज्यादा संभावना है कि वे क्रासवाक के बजाए मध्य से सड़क पार करें।’’


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