साइड इफैक्ट के बिना दिमाग का इलाज करेगी MiNDS नीडल

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Sunday, February 4, 2018-11:36 AM

जालंधर : मस्तिष्क के विशेष भाग का इलाज करने के लिए दवा को मौखिक रूप से या नसों के जरिए दिमाग तक पहुंचाया जाता है, लेकिन इनका साइड इफैक्ट पूरे दिमाग पर पड़ता है। इसी खतरे से रोगी को बचाने के लिए MiNDS (मैसाचुसेट्स इंस्टीच्यूट ऑफ टैक्नोलॉजी) के वैज्ञानिकों ने नई अल्ट्रा थिन नीडल को विकसित किया है जो मस्तिष्क के किसी भी भाग तक थोड़ी मात्रा में दवा को पहुंचाने के काम आएगी। जिससे जोखिम को कम करते हुए डिप्रैशन का इलाज सम्भव होगा। वैज्ञानिकों ने बताया है कि इस MiNDS (मिनीएचुराइज्ड) नैचुरल ड्रग डिलीवरी सिस्टम से दिमाग के वन क्यूबिक मिलीमीटर जितने छोटे भाग में दवा को पहुंचाया जा सकता है जिससे कई बीमारियों का इलाज करने में मदद मिलेगी। 

 

इन बीमारियों का सम्भव होगा इलाज
एम.आई.टी. इंस्टीच्यूट के प्रोफैसर रॉबर्ट लंगर ने बताया है कि दिमाग से जुड़ी बीमारी होने पर इससे प्रभावित जोन में इसके जरिए दवा को सीधे ही इन्जैक्ट किया जा सकता है। इससे डिप्रैशन के साथ-साथ पार्किंसन जैसी बीमारी का इलाज करने में भी मदद मिलेगी। उन्होंने बताया है कि डॉक्टर काफी समय से चाहते थे कि एक ऐसी ट्यूब बनाई जाए जो सीधे ही दिमाग तक दवा को पहुंचाने के काम आए लेकिन ऐसा करने पर इन्फैक्शन होने का खतरा भी था, लेकिन अब इस MiNDS नीडल की मदद से दिमाग का इलाज करने में डॉक्टरों को काफी आसानी होगी। 

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इस तरह काम करेगी MiNDS नीडल
दवा को दिमाग के किसी खास भाग तक पहुंचाने के लिए इसमें मनुष्य के बाल के आकार की स्टेनलैस स्टील नीडल लगाई गई है जिसे दो अल्ट्रा थिन मैडिकेशन ट्यूब्स के साथ जोड़ा गया है। इस नीडल के आकार को काफी लम्बा रखा गया है ताकि यह दिमाग के सभी अंदरूनी हिस्सों तक खोपड़ी में एक छेद के माध्यम से पहुंच सके। इसके पीछे की ओर दो छोटे प्रोग्रामेबल पम्प लगाए गए हैं जिनमें जरूरत पडने पर दो अलग-अलग तरह की दवाओं को एक के बाद एक इंजैक्ट किया जा सकता है। 

 

जानवरों पर किया जा रहा टैस्ट
एम.आई.टी. के प्रमुख लेखक कानन दगदेवीरेन ने साइंस ट्रांसलेशनल मैडीसिन पत्रिका को बताया है कि इस MiNDS नीडल के जरिए सबसे पहले मुसीमोल नामक ड्रग को चूहे के दिमाग के सबस्टैनटिया नीगरा रीजन तक पहुंचाया गया जिससे वह असामान्य रूप से हरकत करने लगा व इसके साथ ही दूसरे चैनल के जरिए इन्फ्यूस्ड सेलाइन सॉल्यूशन को इंजैक्ट करने पर इसने चूहे के शरीर पर पडने वाले पार्किंसन के प्रभाव को बंद कर दिया। 

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न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर का भी पता लगाने में मिलेगी मदद
वैज्ञानिकों ने बताया है कि इसमें ट्यूब्स की बजाय फाइबर ऑप्टिक का भी इस्तेमाल किया जा सकता है जिसकी मदद से लाइट के जरिए न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर को ठीक किया जा सकेगा। इस तकनीक को फिलहाल जानवरों पर टैस्ट किया जा रहा है। उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही इंसानों पर भी इसका टैस्ट शुरू होगा।


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