कार्बन डाइआक्साइड भी बन सकती है साफ ऊर्जा का स्रोत

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Thursday, February 25, 2016-8:40 AM

जालंधर : वातावरण को प्रदूषण से बचाने के लिए विज्ञानी कोई न कोई विधि ढूंढते आ रहे हैं। हमारे वातावरण में वर्तमान समय में कई तरह की गैसें हैं जो प्रदूषण का कारण बनती हैं। देखने वाली बात है कि हमारे वातावरण में कार्बन डाइआक्साइड (CO2) की मात्रा ज्यादा होने के कारण प्रदूषण बहुत ज्यादा फैल रहा है और विज्ञानी यह  कोशिश कर  रहे  हैं  कि वातावरण में से कार्बन डाइआक्साइड (CO2)  की मात्रा को किसी तरह कम कर वातावरण को साफ और शुद्ध किया जा सके। कई विज्ञानी कार्बन डाइआक्साइड (CO2) गैस को इस तरह बदलना चाहते हैं कि इसको फ्यूल के रूप में इस्तेमाल किया जा सके।

इस तरह के एक्सपैरीमैंट के लिए हाइड्रोजन और मिथानोल को भी कई तरह के टैस्टों के साथ जांचा गया है परन्तु इसके साथ कई पेचीदा कदम भी उठाए गए जो सीधे तौर पर कार्बन डाइआक्साइड को फ्यूल के तौर पर बदलने के लिए काफी नहीं थे। रिसर्चर्स ने कार्बन डाइआक्साइड (CO2) और पानी को एक आसान और सस्ते तरल हाइड्रोकार्बन फ्यूल में बदला है जिसके लिए उन्होंने हल्की केंद्रित गर्मी और हाई प्रैशर का प्रयोग करते हुए इसको अंजाम दिया है।

यह कमाल यूनिवर्सिटी आफ टैक्सस आरलिंगटन (यू. टी. ए.) के रिसर्चरों ने किया है जिसके साथ यह टिकाऊ फ्यूल वातावरण में से कार्बन डाइआक्साइड (CO2) को लेगा और बाईप्राडक्ट के तौर पर आक्सीजन को रिलीज करेगा। इसके साथ साफ-सुथरा पर्यावरण तैयार होगा।

यू. टी. ए. में मैकेनिकल और एरोस्पेस इंजीनियरिंग के प्रोफैसर ब्रायन डेनिस का कहना है कि हमने रोशनी और गर्मी के प्रयोग के साथ कार्बन डाइआक्साइड और पानी से सिंथीसाइज तरल हाइड्रोकार्बन तैयार किया है। इसको सिंगल स्टैप प्रोसैस कहा जाता है, जिसमें कांसट्रेटिड लाइट फोटोकैमीकल रिएक्शन बनाती है, जो बहुत ज़्यादा मात्रा में एनर्जी पैदा करता है, इसके साथ थर्मो कैमीकल -चेन -रिएक्शन होता है। सोलर फोटो थर्मो कैमीकल अलकेन नाम के साथ जाना जाता यह चेन-रिएक्शन रिवर्स कंजप्शन कर कार्बन डाइआक्साइड (CO2) और पानी को आक्सीजन व तरल हाइड्रोकार्बन फ्यूल में बदल देता है।

इस तरह तैयार हुए तरल हाइड्रोकार्बन फ्यूल को पहले से मौजूद हाइड्रोजन के साथ चलने वाली कारों, ट्रकों और जहाजों में इस्तेमाल किया जा सकता है, इसके लिए पहले से मौजूद फ्यूल डिस्ट्रीब्यूशन व्यवस्था को बदलने का जरूरत नहीं है। अब इस टैक्नोलॉजी में थोड़ा-सा बदलाव करने की मुहिम चल रही है क्योंकि पानी में से हाइड्रोजन और आक्सीजन को अलग करने के लिए अल्ट्रावायलट किरणों की जरूरत होती है। परन्तु आम रोशनी में यह प्रोसैस ज्यादा कारगर साबित नहीं होता इसलिए इस तरह की तकनीक तैयार की जाएगी जिसके साथ सूरज की रोशनी से तैयार शुद्ध सोलर तरल फ्यूल मिल सके।

 


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