भारतीय प्रोफेसर व 2 युवा वैज्ञानिकों ने किया कमाल, कम्प्यूटर को दी सोच!

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Sunday, August 2, 2015-9:41 PM

इंदौर : क्या कम्प्यूटर भी इंसानी दिमाग की तरह सपने देख सकता है? क्या अब तक यूजर के कमांड से चलने वाला कम्प्यूटर सोचने का काम कर सकता है? इस बारे में शायद ही आपने सोचा होगा पर इंदौर के एक प्रोफेसर व 2 युवा वैज्ञानिकों ने "न्यूरो डीएफएस कम्प्यूटर ड्रीमिंग सिस्टम: अ वर्चुअल डाटा जनरेशन एंड मैथर्ड ऑफ न्यूरल नेटवर्क" के जरिए यह मुकाम हासिल किया है।

इस तकनीक की मदद से कम्प्यूटर आॅन होते ही सोचना शुरू कर देगा और एक कमांड पर पहले से कही ज्यादा तेजी से आपको फीडबैक देगा। इसके पेटेंट का आवेदन भी किया गया है जिसे इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी इंडिया ने स्वीकार कर लिया हैं। अगले जर्नल में उनका यह पैटेंट प्रकाशित किया जाएगा।

मेडिकैप्स इंस्टिटयूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड मैनेजमेंट में प्रोफेसर डॉ. पंकज दशोरे, सुयश व सुयोग दीक्षित ने मानव मस्तिष्क में मौजूद लाखों न्यूरॉन को आधार बनाते हुए काॅलेज के 100 कम्प्यूटरों से न्यूरल नेटवर्क और जेनेटिक अल्गोरिथम के जरिए कम्प्यूटर को सोचने की शक्ति प्रदान की।

कैसे आया यह आईडिया
गूगल डेवलपर ग्रुप में सेंटल इंडिया के हैड सुयश को नासा में काम करने के दौरान आयडिया आया कि कम्प्यूटर भी इंसान की तरह सोच सकता है।

क्या है न्यूरल नैटवर्क
मनुष्य के दिमाग में करोड़ों न्यूरॉन होते हैं जिसकी वजह से मानव सपने देखता है। कम्प्यूटर को सपना दिखाने के लिए हर कम्प्यूटर को एक न्यूरॉन माना गया। मानव दिमाग की तरह दुनियाभर के कम्प्यूटर को चंद सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर को अपग्रेड कर जोड़ दिया। जिससे उनमें सोचने की शक्ति आ गई।


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