तकनीकी करिशमा : अपने पैरों पर चला अपंग

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Friday, September 25, 2015-9:58 PM

जालंधर : हाल के वर्षों में विशेष रूप से मस्तिष्क इंटरफेस के रूप में पैरालाइसिस से ग्रस्त मरीजों के लिए आशा की नई उम्मीद जगी है। पिछले 12 महीनों में हमने कई बेहतर परिणामों को देखा है जो टैक्नोलॉजी के साथ मिलकर मस्तिष्क की विद्युतीय गतिविधियों की व्याख्या करता है।

यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में शोधकर्त्ताओं की एक टीम द्वारा Irvine नाम की एक नई विधि तैयार की गई है जो एक्सोसूट के समीकरण से मरीज के अंगों के संकेतों को सीधे हस्तांतरण करता है। यह स्टडी इस बात का प्रूफ है कि इस सिस्टम ने पहली बार बिना किसी रोबोटिक सहायता के दोनों पैरों से पूरी तरह से पैरालाइसिस का शिकार हुए व्यक्ति को मैन्युअल और स्वतंत्र रूप से चलाने में मदद की। यह रोगी 5 साल पहले एक दुर्घटना के कारण पैरालाइसिस का शिकार हो गया था और अब यह 3.66 मीटर (लगभग 12 फीट) तक अपने पैरों के सहारे चला।

न्यूरोलॉजिस्ट An Do के साथ-साथ इस स्टडी के एक को-लीडर बायोमैडिकल इंजीनियर Zoran Nenadic ने कहा कि यहां तक कि पैरालाइसिस के वर्षों बाद भी रोगी का मस्तिष्क मजबूत तरंगें उत्पन्न कर रहा है जिसका इस्तेमाल बुनियादी तौर पर चलने में किया जा सकता है। 

‘हमें पता चला है कि पूरी तरह रीढ़ की हड्डी में चोट लगने के बाद आप सहज ही मस्तिष्क को नियंत्रित चलाने के लिए रिस्टोर कर सकते हैं। पैर की मांसपेशियों की उत्तेजना के लिए यह एक आशाजनक तरीका है।’

यह सिस्टम पैरालाइसिस के लिए एक ऑटोमैटिक इलाज नहीं है। पैरालाइसिस के बहुत समय के बाद रोगी को मूल रूप से शुरू से चलना सीखना पड़ेगा और इस प्रक्रिया में महीनों लग जाएंगे और इसमें ’यादा मेहनत मस्तिष्क की लगेगी।

रोगी को चलने के लिए अपने मस्तिष्क से संकेत भेजने पड़ते हैं कि वह चल रहा है। EEG कैप पहन कर उसके मस्तिष्क से सारे संकेतों को भेजा जा सकता है। यह सारा डाटा चलने की क्रिया को मस्तिष्क में जमा कर लेता है और फिर डाटा को उस फॉर्म में पैरों तक भेजा जाता है जिससे मांसपेशियां इस डाटा को दिमाग के आदेश की तरह रिसीव करती हैं।

इसके लिए रोगी को सीखना पड़ेगा कि कैसे इस इनफार्मेशन को यूज किया जाए। पहले रोगी वर्चुअल रिएलटी से इसे सीखेगा और फिर असल जिंदगी में इसका इस्तेमाल कर सकेगा। इससे मरीज केवल प्रैक्टिस कर सकेगा कि कैसे मांसपेशियों को संकेत देने हैं।

कुछ सालों से उसके पैरों में कोई हरकत नहीं हो रही थी और उसके पैर बेहद बुरी हालत में थे। उसके पैरों में सुधार और इनमें मजबूती लाने के लिए पुनर्वास केंद्र और फिजीकल थैरेपी की मदद लेनी पड़ी। अंतत: उसे मस्तिष्क पर पहनी हुई इलैक्ट्रोड कैप की सहायता से दिमाग के संकेत घुटनों तक पहुंचाने में आसानी होगी।

पहले परीक्षण में रोगी अपने कदमों को एक-दो इंच तक ही उठा सकेगा, फिर उसके बाद उसे अपने मांसपेशियों को पूर्णरूप से इस्तेमाल करने में आसानी होगी। एक रोगी पर यह टैस्ट कामयाब होने के बाद अब इसे पैरालाइसिस का शिकार हुए अन्य रोगियों पर भी इस तकनीक का प्रयोग किया जाएगा।


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