पुरातन समुद्र के तापमान के साथ दर्शाई गई सांसारिक जलवायु

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Thursday, January 21, 2016-8:53 AM

जालंधर: धरती पर गर्म इलाके और नान -ट्रॉपिकल इलाकों के नज़दीक समन्दर के तापमान की ढलान पूरी धरती के वातावरण के लिए एक इंजन का कम करती है। यह तापमान की ढलान ग्लोबल ऐटमोसफेयर के चक्कर के साथ-साथ धरती पर पानी के भाप बनने को भी कंट्रोल करती है। 

एक स्टडी के मुताबिक रिसरचरों ने 4 से 5 मिलियन साल पहले जलवायु के बदलाव को दिखाया है। इस में उत्तर और दक्षिण में भूमद्ध रेखा में मध्य-अक्षांश क्षेत्र में हुए विकास को दिखाया गया है। इस को शुरुआती प्लायओसीन युग कहा गया है। 

शोधकर्ताओं ने यह भी बताया कि शुरुआती प्लायओसीन युग में जो वातावरण में कारबनडाईआकसाईड की मात्रा थी वह आज के समय के मुताबिक है परन्तु उस समय सब -ट्रापिक इलाकों से लेकर आकरटिक तक समुन्दर का तापमान वर्तमान के मुकाबले काफ़ी अधिक था। अगर इसे एक उदाहरण के तौर पर लें तो उस समय भी उपनाम एल नीनो, जो कि हज़ारों सालों से कायम है, उस समय भी हो रहा था। आपको यह बता दें कि एल नीनो को 16 वीं सदी में खोजा गया था जो कि हवाओं की एक ऐसी प्रक्रिया है जिस में ट्रेड हवाएं पैसेफिक ओशन की तरफ धीमी रफ़्तार के साथ बढ़ती हैं और पूरी धरती पर इस का प्रभाव बाढ़, तूफ़ान आदि जैसी मौसम के साथ सबंधित घटनाओं के साथ देखा जा सकता है। 

येल यूनिवर्सिटी के भुगोल के प्रोफ़ैसर एलैकसी फैडरोफ ने कहा कि हमारे लिए यह सब से बड़ी समस्या थी कि पलायओसीन युग की गर्मी की किस तरह व्याख्या की जाए। इसी के अंतर्गत रिसरचरों ने मध्य -अक्षांश और दक्षिण प्रशांत सागर में तापमान के बदलाव का पता लगाया था परन्तु यह कोई लम्बे समय के लिए रिकार्ड किया गया तापमान नहीं था। इकठ्ठे किए गए नए रिकार्ड के मुताबिक पलायओसीन युग में पानी के तापमान और वर्तमान में पानी के तापमान में सिर्फ 5 डिगरी सैसियस का ही फर्क है। पहले यह तर्क दिया गया था कि पलायओसीन युग में तापमान में बदलाव काफ कमज़ोर था और अब यह दर्शाया जा रहा है कि समुन्दर में तापमान का बदलाव भूमद्ध रेखा से ले कर मध्य -अक्षाश क्षेत्र तक बहुत ही कम था। 

 


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