मैडीकल डिवाइसिस को और बेहतर बनाएगी नई FLEXIBLE BATTERY

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Sunday, September 17, 2017-12:52 PM

जालंधर : अस्पताल में इलाज करवाते समय डॉक्टर कई ऐसी डिवाइसिस का उपयोग करते हैं जो बैटरी से काम करती हैं। ऐसे में बैटरी के बड़े होने की वजह से रोगी को कई बार काफी असुविधा होती है। इसी बात पर ध्यान देते हुए अंटारियो की क्वीन रिसर्च यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने ऐसी फ्लैक्सीबल ऑर्गेनिक बैटरी को बनाया है जो इलैक्ट्रिकल डिवाइसिस का उपयोग करते समय मरीज़ को किसी भी तरह का कष्ट नहीं होने देगी। यह बैटरी मरीज़ के हिलने-डुलने पर अपना आकार बदल लेगी जिससे यूजर को किसी भी तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा।

 

आपको बता दें कि दिल के सही तरीके से काम न करने व स्लो या तेज धड़कने पर डॉक्टर हार्ट रिदम डिवाइस पेसमेकर का उपयोग करते हैं जो दिल की धड़कन को सही करने में मदद करती है। इस बैटरी पावर्ड डिवाइस को रोगी की चैस्ट के ऊपर लगाकर एक लीड के साथ हार्ट से कनैक्ट किया जाता है। जैसे ही हार्ट बीट स्लो होती है तो यह डिवाइस इलैक्ट्रिक पल्स से हार्ट बीट को नार्मल करने में मदद करती है। ऐसे में इस फ्लैक्सीबल बैटरी की मदद से इन डिवाइसिस के साइज को छोटा किया जा सकता है।

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3 गुणा पावर को किया जा सकेगा स्टोर 
इस नई फ्लैक्सीबल आर्गैनिक बैटरी में साधारण बैटरी के मुकाबले 3 गुणा ज्यादा पावर को स्टोर किया जा सकेगा। इसके अलावा इसे डीकम्पोका यानी अलग-अलग पार्ट्स में नष्ट करने पर पर्यावरण को नुक्सान नहीं होगा। क्वीन यूनिवर्सिटी की आयोनिक लिक्विड लैबोरेटरी की रिसर्च लीडर डा. गीथा श्रीनिवासन का कहना है कि पेसमेकर मैडीकल डिवाइस के दो पार्ट्स में से एक पार्ट को हार्ट के साथ अटैच किया जाता है, वहीं दूसरे को स्किन के अंदर रखा जाता है। शरीर के अंदर वाला हिस्सा रोगी को काफी दिक्कत देता है। इसी बात पर ध्यान देते हुए बैटरी को फ्लैक्सीबल बनाया गया है ताकि यह शरीर के हिलने पर अपनी शेप बदल ले और मरीज़ को परेशानी न हो। 

 

बैटरी में नहीं होगी लीकेज और ब्लास्ट
फ्लैक्सीबल बैटरी की एक और खासियत यह भी है कि इसमें किसी भी तरह की लीकेज नहीं होगी। इसके अलावा इसमें आग लगने का खतरा भी नहीं है। इसीलिए इसे पेशैंट्स के लिए उपयोग में लाए जाने वाले डिवाइसिस के लिए कम्फर्टेबल ऑप्शन कहा जा सकता है क्योंकि कई बार रोगी अपनी बॉडी को मूव करता है तो ऐसे में इस बैटरी से बनाए गए डिवाइसिस के फटने का डर नहीं रहेगा। उम्मीद की जा रही है कि यह तकनीक आने वाले 5 वर्षों में उपयोग में लाई जाएगी।


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